ग्राम चौकीदार, जिन्हें ग्राम प्रहरी के नाम से भी जाना जाता है, गाँवों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये लोग दिन-रात गश्त करते हैं, अपराध की सूचना पुलिस तक पहुँचाते हैं, और गाँव में होने वाली छोटी-बड़ी घटनाओं पर नजर रखते हैं। लेकिन उनकी मेहनत के बावजूद, उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति बेहद चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में चौकीदारों को 2,500 रुपये का अल्प मासिक मानदेय मिलता है, जो आज के महंगाई के दौर में नाकाफी है। इसीलिए ग्राम चौकीदारों ने अपनी मांगों को लेकर कोर्ट का रुख किया है। इस लेख में हम “क्या फैसला आएगा ग्राम चौकीदारों के कोर्ट केस का उनके हक़ में” के तहत उनकी समस्याओं, कोर्ट केस की स्थिति, और संभावित परिणामों को विस्तार से समझेंगे।

ग्राम चौकीदारों की समस्याएँ
उत्तर प्रदेश में लगभग 70,000 ग्राम चौकीदार हैं, जो गाँवों की सुरक्षा का आधार हैं। इनका काम सिर्फ गश्त करना ही नहीं, बल्कि जन्म-मृत्यु रजिस्ट्रेशन, शादी रजिस्ट्रेशन, और पंचायत के छोटे-मोटे कामों में भी मदद करना होता है। लेकिन इतने सारे कर्तव्यों के बाद भी इन्हें जो मानदेय मिलता है, वो बेहद कम है। 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इनका मानदेय 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये किया था, लेकिन उसके बाद से इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ। इस राशि में परिवार चलाना, बच्चों की पढ़ाई, और बुनियादी जरूरतें पूरी करना लगभग असंभव है। इसके अलावा, इन्हें बुनियादी सुविधाएँ जैसे वर्दी, साइकिल, टॉर्च, या सर्दी का जैकेट भी नहीं दिया जाता।
चौकीदारों का कहना है कि उनसे पुलिस थानों पर कई बार गैर-जरूरी काम करवाए जाते हैं, जैसे थाने की साफ-सफाई या दस्तावेजों को इधर-उधर ले जाना, जो उनके मूल कर्तव्यों में शामिल नहीं है। अगर वे मना करते हैं, तो उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है। इस तरह की प्रताड़ना और कम वेतन की वजह से चौकीदारों ने अपनी मांगों को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की है।
चौकीदारों की मुख्य माँगें
ग्राम चौकीदारों ने अपनी याचिका में निम्नलिखित माँगें रखी हैं:
- मानदेय में वृद्धि: कम से कम 10,500 रुपये मासिक वेतन, जो केंद्र सरकार द्वारा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए तय न्यूनतम वेतन के बराबर हो।
- राज्य कर्मचारी का दर्जा: चौकीदारों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देकर पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, और अन्य सुविधाएँ दी जाएँ।
- बुनियादी सुविधाएँ: वर्दी, साइकिल, टॉर्च, और अन्य जरूरी सामान उपलब्ध करवाए जाएँ।
- सामाजिक सुरक्षा: ड्यूटी के दौरान दुर्घटना या मृत्यु होने पर आर्थिक सहायता और बीमा की सुविधा।
कोर्ट केस की वर्तमान स्थिति
चौकीदारों ने अपनी माँगों को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इस केस में उनकी माँग है कि सरकार उनके मानदेय को बढ़ाए और उनकी सेवाओं को नियमित करे। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और सरकार से जवाब माँगा है। हालाँकि, अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। इससे पहले भी चौकीदारों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया था, लेकिन सरकार की ओर से सिर्फ आश्वासन ही मिले, कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
कुछ राज्यों में चौकीदारों की स्थिति में सुधार हुआ है। हरियाणा में 2023 में चौकीदारों का मानदेय 7,000 रुपये से बढ़ाकर 11,200 रुपये किया गया, साथ ही रिटायरमेंट पर 2 लाख रुपये की एकमुश्त राशि दी जाती है। पंजाब में भी 2025 में मानदेय 1,250 रुपये से बढ़ाकर 1,500 रुपये किया गया। लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में अभी तक कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है।
क्या फैसला चौकीदारों के हक में आ सकता है?
कोर्ट केस का फैसला कई बातों पर निर्भर करता है। पहला, सरकार का रवैया। अगर सरकार चौकीदारों की माँगों को गंभीरता से लेती है और कोर्ट में उनकी माँगों को पूरा करने का भरोसा देती है, तो फैसला चौकीदारों के हक में हो सकता है। दूसरा, कोर्ट का नजरिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहले भी कई सामाजिक मुद्दों पर संवेदनशीलता दिखाई है। अगर कोर्ट को लगता है कि चौकीदारों के साथ अन्याय हो रहा है, तो उनके हक में फैसला आने की संभावना बढ़ जाती है।
तीसरा, केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन 20,358 रुपये मासिक तय किया है, जो चौकीदारों की माँग को मजबूत करता है। अगर कोर्ट इस नियम को आधार मानता है, तो चौकीदारों का मानदेय बढ़ाने का आदेश दे सकता है। लेकिन अगर सरकार इस मामले को लंबा खींचती है या कोर्ट को संतुष्ट करने वाला जवाब देती है, तो फैसला टल भी सकता है।
संभावित परिणाम और प्रभाव
अगर फैसला चौकीदारों के हक में आता है, तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। वे अपने परिवार की बेहतर देखभाल कर पाएँगे और गाँवों की सुरक्षा को और मजबूत करने में योगदान दे सकेंगे। इसके अलावा, यह फैसला अन्य राज्यों के चौकीदारों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। लेकिन अगर फैसला उनके खिलाफ जाता है, तो चौकीदारों में निराशा बढ़ेगी और वे बड़े आंदोलन की राह चुन सकते हैं।
“क्या फैसला आएगा ग्राम चौकीदारों के कोर्ट केस का उनके हक़ में” यह सवाल अभी अनुत्तरित है। ग्राम चौकीदार गाँवों की सुरक्षा की रीढ़ हैं, लेकिन उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन नहीं हो रहा। उनकी माँगें जायज हैं, और कोर्ट से उन्हें न्याय की उम्मीद है। हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों ने चौकीदारों की स्थिति सुधारने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों को भी इस दिशा में आगे बढ़ना होगा। अगर आप भी इस मुद्दे से जुड़े हैं, तो अपनी आवाज उठाएँ और इस बदलाव का हिस्सा बनें।
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